Namaskaram, I hope you all are healthy and doing well in your life.
It was about 10 days ago. An elder brother of mine (Prince Ranjan Barnwal ji) asked me to participate in an essay competition related to yoga which was organized by him. But due to extreme busyness, I could not participate in that essay competition. Therefore today on the occasion of World Yoga Day, this article of mine is related to yoga itself.
By the way, I am not a specialist of yoga at all. But at whatever stage I have understood yoga in my life so far, I am trying to put it before you.
Most people of this world feel that yoga means doing something special with their body. But I think there is no need to do anything to be in yoga. But if your body is in bad condition or you are sick then you can work on it. Otherwise there is no need to do anything with the body.
There are many ways of looking at yoga. But in my view, yoga means that we are experiencing our life beyond our physical limits. Because our materiality is a collection. This is something that we have collected over time. By collecting something, you feel that you are there and you limit yourself there. Therefore, this is the basis of ignorance in the world.
But at the level of experience there are many ways to go beyond this. These tools are called yoga practice and the science behind it is called yoga. So let's try to understand some of its points -
Air is the most dynamic element in our body composed of five elements. Because every 1 minute we breathe about 12 to 20 times and release it. So it is definitely important for us what kind of air we breathe. And we all know this too. But how and how much we breathe in consciousness is equally important. Therefore it is necessary that we breathe better and while being in contact with nature, we should do something that makes the breath in a dynamic state.
You can see that when the body feels that the air is pure and vibrant, the body breathes in a different way and there is transaction and purification inside the body. So it becomes very important especially for the youth. Because it increases the integrity and strength of the body.
Furthermore, we can only do yoga in our mind, in our body, in our emotions or in our energies. Or we can also do yoga just by the way we sit and stand. Because in the process of development of our body, our brain developed only after our spine went from horizontal to vertical. So whenever possible you just have to sit upright while being alert. With this, not only your posture but your way of thinking, seeing and experiencing life starts to change gradually.
So yoga always pays attention to rest of the limbs. Because our basic health and how long we live and how our body works, it depends on the secretions and functions of these organs.
Lord Shri Krishna has also said in Srimad Bhagavad Gita-
"Yogasthah Kuru Karmani"
That is, 'Settle in yoga and then work' (Perform your duty and abandon all attachment to success or failure. Such equality of mind is called Yoga).
Thank you
हिंदी अनुवाद: नमस्कार, मुझे आशा है कि आप सभी स्वस्थ होंगे और अपने जीवन में अच्छा कर रहे होंगे।
लगभग 10 दिनों पहले की बात है। मेरे एक बड़े भाई समान मित्र (प्रिंस रंजन बरनवाल जी) ने मुझसे योग से संबंधित एक निबंध प्रतियोगिता में भाग लेने को कहा जोकि उनके द्वारा ही आयोजित की गई थी। परंतु अत्यधिक व्यस्तता होने के कारण मैं उस निबंध प्रतियोगिता में शामिल ना हो सका। इसलिए आज विश्व योग दिवस के अवसर पर मेरा यह लेख योग से ही संबंधित है।
वैसे तो मैं योग का कोई विशेषज्ञ बिल्कुल भी नहीं हूँ। परंतु मैंने अपने अब तक के जीवन में योग को जिस भी स्तर पर समझा है, उसे आपके सामने रखने का प्रयास कर रहा हूं-
इस दुनिया के ज्यादातर लोगों को लगता है कि योग का मतलब है- अपने शरीर से कुछ विशेष चीज करना। पर मुझे लगता है कि योग में होने के लिए कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं है। पर यदि आपका शरीर खराब हालत में है या आप बीमार हैं तो आप उस पर काम कर सकते हैं। वरना शरीर के साथ कुछ भी करने की आवश्यकता नहीं।
वैसे तो योग को देखने के कई तरीके हो सकते हैं। पर मेरे विचार में योग का अर्थ है कि हम अपनी भौतिक सीमाओं से परे अपने जीवन का अनुभव कर रहें हैं। क्योंकि हमारी भौतिकता एक संग्रह है। ये ऐसी चीज है जिसे हमने समय के साथ एकत्रित किया है। कोई चीज एकत्रित करके आपको लगता है कि आप वहीं हैं और आप खुद को वहीं सीमित कर लेते हैं। इसलिए दुनिया में अज्ञान का आधार यही है।
परंतु अनुभव के स्तर पर इससे परे जाने के लिए कई साधन हैं। इन साधनों को योगाभ्यास कहते हैं और इसके पीछे के विज्ञान को योग कहते हैं। तो चलिए हम इसके कुछ बिंदुओं को समझने का प्रयास करते हैं-
पांच तत्वों से बने हमारे शरीर में वायु सबसे गतिशील तत्व है। क्योंकि हर 1 मिनट में हम करीब 12 से 20 बार सांस लेते तथा उसे छोड़ते हैं। इसलिए हम किस तरह की हवा में सांस लेते हैं यह निश्चित रूप से हमारे लिए महत्वपूर्ण है। और ये हम सब जानते भी हैं। परंतु हम कैसे और कितनी चेतना में सांस लेते हैं ये भी उतना ही महत्वपूर्ण है। इसलिए यह आवश्यक है कि हम बेहतर सांस लें तथा प्रकृति के संपर्क में रहते हुए हम कुछ ऐसा करें जिससे सांस गतिशील अवस्था में हो।
आप यह देख सकते हैं कि जब शरीर महसूस करता है कि हवा शुद्ध और जीवंत है तो शरीर अलग तरीके से सांस लेता है और शरीर के अंदर लेनदेन और शुद्धिकरण होता रहता है। तो खासकर युवाओं के लिए ये बहुत महत्वपूर्ण हो जाता है। क्योंकि इससे शरीर की अखंडता और मजबूती बढ़ती है।
इसके अलावा, हम सिर्फ अपने मन में, अपने शरीर में, अपनी भावनाओं में या अपनी ऊर्जाओं में योग कर सकते हैं। या हम बस अपने बैठने तथा खड़े होने के तरीके से भी योग कर सकते हैं। क्योंकि हमारे शरीर के विकास की प्रक्रिया में जब हमारी रीढ़ क्षैतिज से ऊर्ध्वाधर हो गई इसके उपरांत ही हमारा मस्तिष्क विकसित हुआ। इसलिए जब भी संभव हो आपको सजग रहते हुए बस सीधे बैठना है। इससे आपकी मुद्रा ही नहीं अपितु आपके सोचने, देखने और जीवन को अनुभव करने का तरीका धीरे-धीरे बदलने लगता है।
तो योग हमेशा अंगों के आराम पर ध्यान देता है। क्योंकि हमारी बुनियादी सेहत तथा हम कितना लंबा जीते हैं और हमारा शरीर कैसे काम करता है, ये इन अंगों के स्रावों तथा कार्यों पर निर्भर करता है।
भगवान श्री कृष्ण ने भी श्रीमद्भगवद्गीता मे कहा है-
"योगस्थः कुरु कर्माणि"
अर्थात 'योग में स्थित हो जाओ फिर कार्य करो' (अपना कर्तव्य निभाएं और सफलता या असफलता के लिए सभी लगाव को त्याग दें। मन की ऐसी समता को ही योग कहा जाता है।)
धन्यवाद
बहुत सुन्दर आलेख प्रिय, आपने जो लिखा वास्तविक योग ऐसा ही है योग शरीर को तोड़ना तोड़ना नहीं है बल्कि शरीर मन और आत्मा को समझना तथा उनमें सामंजस्य को लाते हुए अपने आपको जानने की प्रक्रिया है अंतर्राष्ट्रीय योग दिवस पर आपके इस आलेख के लिए बहुत-बहुत साधुवाद प्रभु की कृपा से आप स्वस्थ रहें मस्त रहें और व्यस्त रहें नित्य ऐसे आलेख लिखते रहे और लोगों को प्रेरित करते रहें 🧘♂️🕉🙏🕉🧘♂️
ReplyDeleteधन्यवाद भईया जी। बस आपसे प्रेरित होकर की गई एक छोटी सी कोशिश।🙏
DeleteVery informative. I love hot yoga 🧘♀️
ReplyDeleteYeah
DeleteThank you 🙏
Fabulous content
ReplyDeleteThank you dost
DeleteUseful content on yoga, fitness and overall health.
ReplyDeleteThank you so much Sir
Deleteआपने बहुत अच्छी तरह बताया हैं
ReplyDeleteधन्यवाद, बस एक छोटी सी कोशिश है।
Deletevery informative one...
ReplyDeleteYeah
DeleteThank you
योग की महत्ता को समझतास एक अद्भुत लेख ।🚩
ReplyDeleteआपके इन शब्दों के लिए आपका बहुत-बहुत धन्यवाद। 🙏
DeleteNicely written
ReplyDeleteThank you
Deletevery nice..
ReplyDeleteThank you
DeleteVery inspiring. Keep sharing.
ReplyDeleteThank you
DeleteSure
Yogasth Kuru Karmani...... very true and factual
ReplyDeleteYeah
DeleteThank you so much
Good artical yoga is best way for fitness carry on
ReplyDeleteThe reality in your words hit.
ReplyDeleteKeep it up bhaiya 😁
sure, Thank you
DeleteWonderful write up...😊👌
ReplyDeleteThank you 🙂🙏
Deletevery enlightening
ReplyDeleteThank you for your understanding
DeleteReally profound. I like the way you have approached the concept of yoga
ReplyDeleteThank you so much
DeleteHi,
ReplyDeleteThanks for giving me grateful information
your work is very nice.That’s why I regularly visit your site. You would love to see my Corona Virus | Symptoms and way to avoid Corona Virus site as well.
Thank you again.
Thank You
DeleteI appreciate your appreciation towards my articles.
Dost tumne ek dam sahi tarike se apne blog k dwara logo ko samjaya he aasha he ke aapko log pasand kareinge or aapko us se bohot achhi prerna milegi
ReplyDeleteआपके इन साधुवाद शब्दों के लिए आपका हृदय से धन्यवाद।
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